15-11-99  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बाप समान बनने का सहज पुरूषार्थ आज्ञाकारी बनो

आज बापदादा अपने `होलीहंस मण्डली' को देख रहे हैं। हर एक बच्चा होलीहंस है। सदा मन में ज्ञान-रत्नों का मनन करते रहते हैं। होलीहंस का काम ही है व्यर्थ के कंकड़ छोड़ना और ज्ञान-रत्नों का मनन करना। एक-एक रत्न कितना अमूल्य है। हर एक बच्चा ज्ञान-रत्नों की खान बन गये हैं। ज्ञान रत्नों के खज़ाने से सदा भरपूर रहते हैं।

आज बापदादा बच्चों में एक विशेष बात चेक कर रहे थे। वह क्या थी? ज्ञान वा योग की सहज धारणा का सहज साधन है बाप और दादा के `आज्ञाकारी' बन चलना। बाप के रूप में भी आज्ञाकारी, शिक्षक के रूप में भी और सद्गुरू के रूप में भी। तीनों ही रूपों में आज्ञाकारी बनना अर्थात् सहज पुरुषार्थी बनना क्योंकि तीनों ही रूपों से बच्चों को आज्ञा मिली है। अमृतवेले से लेकर रात तक हर समय, हर कर्त्तव्य की आज्ञा मिली हुई है। आज्ञा के प्रमाण चलते रहे तो किसी भी प्रकार की मेहनत वा मुश्किल अनुभव नहीं होगी। हर समय के मन्सा संकल्प, वाणी और कर्म तीनों ही प्रकार की आज्ञा स्पष्ट मिली हुई है। सोचने की भी आवश्यकता नहीं कि यह करें या न करें। यह राईट है या रांग है। सोचने की भी मेहनत नहीं है। परमात्म-आज्ञा है ही सदा श्रेष्ठ। तो सभी कुमार जो भी आये हो, बहुत अच्छा संगठन है। तो हर एक ने बाप का बनते ही बाप से वायदे किये हैं? जब बाप के बने हैं तो सबसे पहले कौन-सा वायदा किया? बाबा, तन-मन-धन जो भी है, कुमारों के पास धन तो ज्यादा होता नहीं फिर भी जो है, सब आपका है। यह वायदा किया है? तन भी, मन भी, धन भी और सम्बन्ध भी सब आपसे - यह भी वायदा पक्का किया है? जब तन-मन-धन, सम्बन्ध सब आपका है तो मेरा क्या रहा! फिर कुछ मेरा-पन है? होता ही क्या है? तन, मन, धन, जन.... सब बाप के हवाले कर लिया। प्रवृत्ति वालों ने किया है? मधुबन वालों ने किया है? पक्का है ना! जब मन भी बाप का हुआ, मेरा मन तो नहीं है ना! या मन मेरा है? मेरा समझकर यूज़ करना है? जब मन बाप को दे दिया तो यह भी आपके पास `अमानत' है। फिर युद्ध किसमें करते हो? मेरा मन परेशान है, मेरे मन में व्यर्थ संकल्प आते हैं, मेरा मन विचलित होता है...., जब मेरा है नहीं, अमानत है फिर अमानत को मेरा समझ कर यूज़ करना, क्या यह अमानत में ख्यानत नहीं है? माया के दरवाजे हैं - ``मैं और मेरा''। तो तन भी आपका नहीं, फिर देह-अभिमान का मैं कहाँ से आया! मन भी आपका नहीं, तो मेरा-मेरा कहाँ से आया? तेरा है या मेरा है? बाप का है या सिर्फ कहना है, करना नहीं? कहना बाप का और मानना मेरा! सिर्फ पहला वायदा याद करो कि न बॉडी-कान्सेस की - `मैं है, न मेरा'। तो जो बाप की आज्ञा है, तन को भी अमानत समझो। मन को भी अमानत समझो। फिर मेहनत की ज़रूरत है क्या? कोई भी कमज़ोरी आती है तो इन दो शब्दों से आती है - ``मैं और मेरा''। तो न आपका तन है, न बॉडी-कान्सेस का ``मैं''। मन में जो भी संकल्प चलते हैं अगर आज्ञाकारी हो तो बाप की आज्ञा क्या है? पॉजिटिव सोचो, शुभ भावना के संकल्प करो। फालतू संकल्प करो - यह बाप की आज्ञा है क्या? नहीं। तो जब आपका मन नहीं है फिर भी व्यर्थ संकल्प करते हो तो बाप की आज्ञा को प्रैक्टिकल में नहीं लाया ना! सिर्फ एक शब्द याद करो कि - `मैं परमात्म-आज्ञाकारी बच्चा हूँ।' बाप की यह आज्ञा है या नहीं है, वह सोचो। जो आज्ञाकारी बच्चा होता है वह सदा बाप को स्वत: ही याद होता है। स्वत: ही प्यारा होता है। स्वत: ही बाप के समीप होता है। तो चेक करो मैं बाप के समीप, बाप का आज्ञाकारी हूँ? एक शब्द तो अमृतवेले याद कर सकते हो - ``मैं कौन?'' आज्ञाकारी हूँ या कभी आज्ञाकारी और कभी आज्ञा से किनारा करने वाले?

बापदादा सदा कहते हैं कि किसी भी रूप में अगर एक बाबा का सम्बन्ध ही याद रहे, दिल से निकले - `बाबा', तो समीपता का अनुभव करेंगे। मन्त्र 18 मुआफ़िक नहीं कहो ``बाबा-बाबा'', वह राम-राम कहते हैं आप बाबा-बाबा कहते, लेकिन दिल से निकले - `बाबा'! हर कर्म करने के पहले चेक करो कि मन के लिए, तन के लिए या धन के लिए बाबा की आज्ञा क्या है? कुमारों के पास चाहे कितना भी थोड़ा सा धन है लेकिन जैसे बाप ने आज्ञा दी है कि धन का पोतामेल किस प्रकार से रखो, वैसे रखा है? या जैसे आता वैसे चलाते? हर एक कुमार को धन का भी पोतामेल रखना चाहिए। धन को कहाँ और कैसे यूज़ करना है, मन को भी कहाँ और कैसे यूज़ करना है, तन को भी कहाँ लगाना है, यह सब पोतामेल होना चाहिए। आप दादियां जब धारणा की क्लास कराती हैं तो समझाती हैं ना कि धन को कैसे यूज़ करो! क्या पोतामेल रखो! कुमारों को पता है पोतामेल कैसे रखना है, कहाँ लगाना है, यह मालूम है? थोड़े हाथ उठा रहे हैं, नये-नये भी हैं, इन्हों को मालूम नहीं है। इन्हों को यह ज़रूर बताना कि क्या क्या करना है! निश्चिंत हो जायेंगे, बोझ नहीं लगेगा क्योंकि आप सबका लक्ष्य है, कुमार माना लाइट। डबल लाइट। कुमारों का लक्ष्य है ना कि हमको नम्बरवन आना है? तो लक्ष्य के साथ लक्षण भी चाहिए। लक्ष्य बहुत ऊँचा हो और लक्षण नहीं हो तो लक्ष्य तक पहुँचना मुश्किल है। इसलिए जो बाप की आज्ञा है उसको सदा बुद्धि में रख फिर कार्य में आओ।

बापदादा ने पहले भी समझाया है कि ब्राह्मण जीवन के मुख्य खजाने हैं - संकल्प, समय और श्वांस। आपके श्वांस भी बहुत अमूल्य हैं। एक श्वांस भी कामन नहीं हो, व्यर्थ नहीं हो। भक्ति में कहते हैं - श्वांसों-श्वांस अपने इष्ट को याद करो। श्वांस भी व्यर्थ नहीं जाये। ज्ञान का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना... यह तो है ही। लेकिन मुख्य यह तीनों खज़ाने - संकल्प, समय और श्वांस - आज्ञा प्रमाण सफल होते हैं? व्यर्थ तो नहीं जाते? क्योंकि व्यर्थ जाने से जमा नहीं होता। और जमा का खाता इस संगम पर ही जमा करना है। चाहे सतयुग, त्रेता में श्रेष्ठ पद प्राप्त करना है, चाहे द्वापर, कलियुग में पूज्य पद पाना है लेकिन दोनों का जमा इस संगम पर करना है। इस हिसाब से सोचो कि संगम समय की जीवन के, छोटे से जन्म के संकल्प, समय, श्वांस कितने अमूल्य हैं? इसमें अलबेले नहीं बनना। जैसा आया वैसे दिन बीत गया, दिन बीता नहीं लेकिन एक दिन में बहुत-बहुत गँवाया। जब भी कोई फालतू संकल्प, फालतू समय जाता है तो ऐसे नहीं समझो - चलो 5 मिनट गया। बचाओ। समय अनुसार देखो प्रकृति अपने कार्य में कितनी तीव्र है। कुछ-न-कुछ खेल दिखाती रहती है। कहाँ-न-कहाँ खेल दिखाती रहती है। लेकिन प्रकृतिपति ब्राह्मण बच्चों का खेल एक ही है - उड़ती कला का। तो प्रकृति तो खेल दिखाती लेकिन ब्राह्मण अपने उड़ती कला का खेल दिखा रहे हो?

कोई बच्चे ने बापदादा को यह उड़ीसा की रिज़ल्ट लिखकर दी, यह हुआ, यह हुआ...। तो वह प्रकृति का खेल तो देख लिया। लेकिन बापदादा पूछते हैं कि आप लोगों ने सिर्फ प्रकृति का खेल देखा या अपने उड़ती कला के खेल में बिज़ी रहे? या सिर्फ समाचार सुनते रहे? समाचार तो सब सुनना भी पड़ता है, परन्तु जितना समाचार सुनने में इन्ट्रेस्ट रहता है उतना अपनी उड़ती कला की बाज़ी में रहने का इन्ट्रेस्ट रहा? कई बच्चे गुप्त योगी भी हैं, ऐसे गुप्त योगी बच्चों को बापदादा की मदद भी बहुत मिली है और ऐसे बच्चे स्वयं भी अचल, साक्षी रहे और वायुमण्डल में भी समय पर सहयोग दिया। जैसे स्थूल सहयोग देने वाले, चाहे गवर्मेन्ट, चाहे आस-पास के लोग सहयोग देने के लिए तैयार हो जाते हैं, ऐसे ब्राह्मण आत्माओं ने भी अपना सहयोग - शक्ति, शान्ति देने का, सुख देने का जो ईश्वरीय श्रेष्ठ कार्य है, वह किया? जैसे वह गवर्मेन्ट ने यह किया, फलाने देश ने यह किया... फौरन ही अनाउन्समेंट करने लग जाते हैं, तो बापदादा पूछते हैं - आप ब्राह्मणों ने भी अपना यह कार्य किया? आपको भी अलर्ट होना चाहिए। स्थूल सहयोग देना यह भी आवश्यक होता है, इसमें बापदादा मना नहीं करते लेकिन जो ब्राह्मण आत्माओं का विशेष कार्य है, जो और कोई सहयोग नहीं दे सकता, ऐसा सहयोग अलर्ट होके आपने दिया? देना है ना! या सिर्फ उन्हों को वस्त्र चाहिए, अनाज चाहिए? लेकिन पहले तो मन में शान्ति चाहिए, सामना करने की शक्ति चाहिए। तो स्थूल के साथ सूक्ष्म सहयोग ब्राह्मण ही दे सकते हैं और कोई नहीं दे सकता है। तो यह कुछ भी नहीं है, यह तो रिहर्सल है। रीयल तो आने वाला है। उसकी रिहर्सल आपको भी बाप या समय करा रहा है। तो जो शक्तियाँ, जो खज़ाने आपके पास हैं, उसको समय पर यूज़ करना आता है?

कुमार क्या करेंगे? शक्तियाँ जमा हैं? शान्ति जमा है? यूज़ करना आता है? हाथ तो बहुत अच्छा उठाते हैं, अभी प्रैक्टिकल में दिखाना। साक्षी होकर देखना भी है, सुनना भी है और सहयोग देना भी है। आखरिन रीयल जब पार्ट बजेगा, उसमें साक्षी और निर्भय होकर देखें भी और पार्ट भी बजावें। कौन-सा पार्ट? दाता के बच्चे, दाता बन जो आत्माओं को चाहिए वह देते रहें। तो मास्टर दाता हैं ना? स्टॉक जमा करो, जितना स्टॉक अपने पास होगा उतना ही दाता बन सकेंगे। अन्त तक अपने लिए ही जमा करते रहेंगे तो दाता नहीं बन सकेंगे। अनेक जन्म जो श्रेष्ठ पद पाना है, वह प्राप्त नहीं कर सकते हैं, इसीलिए एक तो अपने पास स्टॉक जमा करो। शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना का भण्डार सदा भरपूर हो। दूसरा - जो विशेष शक्तियाँ हैं, वह शक्तियाँ जिस समय, जिसको जो चाहिए वह दे सको। अभी समय अनुसार सिर्फ अपने पुरूषार्थ में संकल्प और समय दो, साथ-साथ दाता बन विश्व को भी सहयोग दो। अपना पुरूषार्थ तो सुनाया - अमृतवेले ही यह सोचो कि - `मैं आज्ञाकारी बच्चा हूँ!' हर कर्म के लिए आज्ञा मिली हुई है। उठने की, सोने की, खाने की, कर्मयोगी बनने की। हर कर्म की आज्ञा मिली हुई है। आज्ञाकारी बनना यही बाप समान बनना है। बस, श्रीमत पर चलना, न मनमत, न परमत। एडीशन नहीं हो। कभी मनमत पर, कभी परमत पर चलेंगे तो मेहनत करनी पड़ेगी। सहज नहीं होगा क्योंकि मनमत, परमत उड़ने नहीं देगी। मनमत, परमत बोझ वाली है और बोझ उड़ने नहीं देगा। श्रीमत डबल लाइट बनाती है। श्रीमत पर चलना अर्थात् सहज बाप समान बनना। श्रीमत पर चलने वाले को कोई भी परिस्थिति नीचे नहीं ले आ सकती। तो श्रीमत पर चलना आता है? अच्छा - तो कुमार अभी क्या करेंगे? निमन्त्रण मिला। स्पेशल खातिरी हुई। देखो, कितने लाड़ले हो गये हो। तो अभी आगे क्या करेंगे? रेसपाण्ड देंगे या वहाँ गये तो वहाँ के, यहाँ आये तो यहाँ के? ऐसे तो नहीं है ना? यहाँ तो बहुत मज़े में हो। माया के वार से बचे हुए हो, ऐसा कोई है जिसको यहाँ मधुबन में भी माया आई हो? ऐसा कोई है जिसको मधुबन में भी मेहनत करनाr पड़ी हो? सेफ हो, अच्छा है। बापदादा भी खुश होते हैं। समय आयेगा जब यूथ ग्रुप पर गवर्मेन्ट का भी अटेन्शन जायेगा लेकिन तब जायेगा जब आप विघ्न-विनाशक बन जाओ। `विघ्न-विनाशक' किसका नाम है? आप लोगों का है ना! विघ्नों की हिम्मत नहीं हो जो कोई कुमार का सामना करे, तब कहेंगे `विघ्न-विनाशक'। विघ्न की हार भले हो, लेकिन वार नहीं करे। विघ्न-विनाशक बनने की हिम्मत है? या वहाँ जाकर पत्र लिखेंगे दादी बहुत अच्छा था लेकिन पता नहीं क्या हो गया! ऐसे तो नहीं लिखेंगे? यही खुशखबरी लिखो - ओ. के., वेरी गुड, विघ्न-विनाशक हूँ। बस एक अक्षर लिखो। ज्यादा लम्बा पत्र नहीं। ओ. के.। लम्बा पत्र हो तो लिखने में भी आपको शर्म आयेगा। शर्म आयेगा ना कि कैसे लिखें, क्या लिखें! कई बच्चे कहते हैं पोतामेल लिखने चाहते हैं लेकिन जब सोचते हैं कि पोतामेल लिखें तो उस दिन कोई-न-कोई ऐसी बात हो जाती है जो लिखने की हिम्मत ही नहीं होती है। बात हुई क्यों? विघ्न-विनाशक टाइटल नहीं है क्या? बाप कहते हैं लिखने से, बताने से आधा कट जाता है। फायदा है। लेकिन लम्बा पत्र नहीं लिखो, ओ. के. बस। अगर कभी कोई गलती हो जाती है तो दूसरे दिन विशेष अटेन्शन रख विघ्न-विनाशक बन फिर ओ. के. का लिखो। लम्बी कथा नहीं लिखना। यह हुआ, यह हुआ... इसने यह कहा, उसने यह कहा.... यह रामायण और उनकी कथायें हैं। ज्ञान मार्ग का एक ही अक्षर है, कौन-सा अक्षर है? - ओ. के. (OK)। जैसे शिवबाबा गोल-गोल होता है ना वैसे ओ (O) भी लिखते हैं। और के (K) अपनी किंगडम। तो ओ.के. माना बाप भी याद रहा और किंगडम भी याद रही। इसलिए ओ. के.... और ओ.के. लिखकर ऐसे नहीं रोज़ पोस्ट लिखो और पोस्ट का खर्चा बढ़ जाए। ओ.के. लिखकर अपने टीचर के पास जमा करो और टीचर फिर 15 दिन वा मास में एक साथ सबका समाचार लिखे। पोस्ट में इतना खर्चा नहीं करना, बचाना है ना। और यहाँ पोस्ट इतनी हो जायेगी जो यहाँ समय ही नहीं होगा। आप रोज़ लिखो और टीचर जमा करे और टीचर एक ही कागज़ में लिखे - ओ.के. या नो (NO)। इंग्लिश नहीं आती लेकिन ओ.के. लिखना तो आयेगा, नो लिखना भी आयेगा। अगर नहीं आये तो बस यही लिखो कि ठीक रहा या नहीं ठीक रहा। तो यूथ की रिज़ल्ट क्या आयेगी? ओ.के. की आयेगी? या कहेंगे वहाँ गये ना ऐसा हुआ, वैसा हुआ! ऐसा वैसा नहीं करना। यूथ अपनी कमाल दिखाओ। जो सब कहें कि नम्बरवन यूथ ग्रुप है। तो स्पेशल मिला? वैसे पार्टी में आते हो तो सामने थोड़े ही बैठने को मिलता है। कोई कहाँ, कोई कहाँ बैठते, अभी तो बिल्कुल सामने बैठे हो। तो इस मधुबन के स्नेह, शक्ति को भूल नहीं जाना। सदा कुछ भी हो, मधुबन की रिफ्रेशमेंट को याद करना। ऐसे है यूथ? देखेंगे। सारे ब्राह्मण परिवार की नज़र इस समय यूथ पर है। यूथ क्या कर रहा है, क्या आगे करता है! सब यही सोच रहे हैं।

बापदादा को भी यह प्रोग्राम अच्छा लग रहा है। सब खुश हैं? तो सदा खुश-राज़ी रहना। सिर्फ मधुबन में खुश नहीं रहना। बापदादा ने पहले भी सुनाया, कि चलते-चलते कोई भी नाराज़ क्यों होते हैं? कोई-न-कोई ज्ञान का राज़ भूलता है तब नाराज़ होते हैं। तो आप तो सब राज़ को समझ, सोच पक्के होके जा रहे हैं ना! कभी नाराज़ नहीं होना - न अपने ऊपर, न कोई आत्मा के ऊपर। खुश रहना। ऐसे तो नहीं सेन्टर पर जाकर खुशी का खज़ाना एक मास जमा रहेगा फिर धीरे-धीरे खत्म हो जायेगा? खत्म तो नहीं होगा ना? सदा साथ रखना। अच्छा - तन-मन-धन बाप को दे दिया है ना? अच्छा, दिल भी दे दी है? दिल बाप को दी है? अगर दिल दे दी है तो बाप जैसे डायरेक्शन दे वैसे चलो, आपके पास दिल - आपके लिए नहीं है। तो बताओ जिसने दिल, दिलाराम को दे दी वह कभी किसी भी आत्माओं से दिल लगायेगा? नहीं लगायेगा ना! तो किसी से भी दिल लगी की बातें, बोल-चाल, दृष्टि वा वृत्ति से तो नहीं करेंगे? या थोड़ी दिल दी है थोड़ी औरों से लगाने के लिए रखी है? दिल दे दी है? तो दिल नहीं लगाना। बाप की अमानत, दिलाराम को दिल दे दी। दिल लगी की कहानियाँ बहुत आती हैं। तो कुमार याद रखना, ऐसे तो प्रवृत्ति वाले भी याद रखना। लेकिन आज कुमारों का दिन है ना। तो बापदादा यह अटेन्शन दिलाते हैं कभी ऐसी रिपोर्ट नहीं आवे। हमारी दिल है ही नहीं, बाप को दे दी। तो दिल कैसे लगेगी! ज़रा भी अगर किसकी दृष्टि, वृत्ति कमज़ोर हो तो कमज़ोर दिल को यहाँ से ही मज़बूत करके जाना। इसमें हाँ जी है! या वहाँ जाकर कहेंगे कि सरकमस्टांश ही ऐसे थे? कुछ भी हो जाए। जब बापदादा से वचन कर लिया, कितनी भी मुश्किल आवे लेकिन वचन को नहीं छोड़ना। बाप के आगे वचन करना, वचन लेना... इस बात को भी याद रखना। कोई आत्मा के आगे वचन नहीं कर रहे हो, परमात्मा के आगे वचन दे कभी भी मिटाना नहीं। जन्म की प्रतिज्ञा कभी भी भूलना नहीं।

अभी सभी एक मिनट के लिए अपने दिल से, वैसे दिल तो आपकी नहीं है, बाप को दे दी है फिर भी दिल में एक मिनट वचन करो कि - ``सदा विघ्न-विनाशक, आज्ञाकारी रहेंगे।'' (ड्रिल) सभी ने वचन किया? अच्छा –

डबल विदेशी हाथ उठाओ। डबल विदेशियों को देखकर आप सभी भी खुश होते हो ना। देखो आप सबको देखकर सभी कितने खुश हो रहे हैं! क्योंकि डबल विदेशियों का संगमयुग पर ड्रामा में बाप को प्रत्यक्ष करने का बहुत अच्छा पार्ट है। बापदादा कहते हैं कि डबल विदेशियों ने बाप का एक टाइटल प्रत्यक्ष किया। पहले थे भारत-कल्याणी और अब हैं प्रैक्टिकल में विश्व-कल्याणी। तो निमित्त बने ना! जब विदेश से कल्प पहले वाली नई-नई आत्मायें आती हैं तो बापदादा भी उनकी विशेषता वा कमाल देखते हैं। बापदादा तो भारत के फिलासॉफी की भी बहुत बातें सुनाते हैं, जो विदेशियों को बिल्कुल पता नहीं, गणेश क्या होता है, हनुमान क्या होता है, रामायण क्या, भागवत क्या, भक्ति क्या, कुछ पता नहीं। लेकिन कल्प पहले के होने कारण सब बातें कैच कर लेते हैं। तो कैचिंग पावर अच्छी है। समझ जाते हैं क्योंकि एक विशेषता है कि जो सुनते हैं, उसका अनुभव करते हैं। सिर्फ सुनने पर नहीं चलते हैं। चाहे शान्ति का अनुभव हो, चाहे खुशी का अनुभव हो, चाहे नि:स्वार्थ प्यार का अनुभव हो, कोई-न-कोई अनुभव परिवर्तन कर देता है। तो बापदादा डबल विदेशियों की कमाल देखते रहते हैं और वाह बच्चे वाह कहते रहते हैं। और आजकल चारों ओर विदेश के समाचारों में सेवा का उमंग अच्छा है। सिर्फ याद और सेवा में थोड़ा सा बैलेन्स और चाहिए। लेकिन फिर भी सेवा का उमंग-उत्साह अच्छा है, और आगे बढ़ते रहते हैं। एक और विशेषता भी है - कभी भी कोई कमज़ोरी छिपाते नहीं हैं। साफ दिल हैं। इसलिए मेकअप कर लेते हैं। सुना - डबल विदेशियों ने। बापदादा - वाह बच्चे, वाह! का गीत गाते रहते हैं। जनरल में भी पर्सनल विदेशियों की मुलाकात हुई? फिर भी देखो सरकमस्टांश को पार करके पहुँच तो जाते हैं। बापदादा देखते हैं मैजारिटी विदेशी हर साल आते ही हैं। भारत वाले कभी मिस भी कर सकते हैं लेकिन यह नहीं करते हैं। आना ही है, क्या भी करें। देखो रशिया वालों को भी देखो, पैसा कम है लेकिन ग्रुप बहुत बड़ा आता है। तो विदेशियों की हिम्मत अच्छी है। इसलिए हर एक विदेशी को बापदादा विशेष यादप्यार और मुबारक दे रहे हैं।

विदेश की टीचर्स सामने बैठी हैं, इन्हों को मधुबन में सेवा करने का चांस ज्यादा मिलता है। अच्छा। गुजरात वाले सेवा में हैं। गुजरात के सेवाधारी हाथ उठाओ। निर्विघ्न गुजरात? टीचर्स भी सभी हिम्मत वाली हैं। जब बुलाओ तब गुजरात ``जी हाज़र'' का पाठ पढ़ता है। अच्छा है। हाँ जी, हाँ  जी करने वालों को अनेक जन्म सभी सामने से हाँ जी, हाँ जी करेंगे। अच्छा है। देखो पहला चांस गुजरात को सेवा का मिला है। दादियों की हुज्जत है, बुलाओ और हाजिर। अच्छा है। अच्छा।

मधुबन में भी चार पाँच भुजायें हैं, तो बापदादा के पास मधुबन की विशेषता पहुँच गई है। मधुबन वालों ने अपने चार्ट भेजे हैं। बापदादा के पास पहुंचे हैं। बापदादा सभी बच्चों को, आज्ञा मानने वाले आज्ञाकारी बच्चों की नज़र से देखते हैं। विशेष कार्य मिला और एवररेडी बन किया है, इसकी विशेष मुबारक दे रहे हैं। अच्छा हर एक ने अपना स्पष्ट लिखा है। (दादी से) आप भी रिज़ल्ट देखकर क्लास कराना। अपनी अवस्था का चार्ट अच्छा लिखा है। बापदादा तो मुबारक दे ही रहे हैं। सच्ची दिल पर सच्चा साहेब राजी होता है। अच्छा –

सभी सुन रहे हैं ना। दूर-दूर भी सुन रहे हैं। (देश-विदेश में इन्टरनेट पर मुरली सुन रहे हैं) देह, देश से दूर भिन्न-भिन्न समय होते हुए भी सुनने के लिए पहुंच जाते हैं, इसलिए बापदादा उन सभी बच्चों को सम्मुख ही देख रहे हैं। सभी दिल से समीप और सम्मुख हैं। अच्छा - साइन्स के साधन का फायदा तो उठा रहे हैं ना। वास्तव में यह सब साधन रिफाइन हो आपके ही काम में आयेंगे। लेकिन संगम पर भी कार्य में ले आ रहे हैं, उसके लिए मुबारक हो। अच्छा - चारों ओर के बापदादा के आज्ञाकारी बच्चों को, सदा विघ्न-विनाशक बच्चों को, सदा श्रीमत पर सहज चलने वाले, मेहनत से मुक्त रहने वाले, सदा मौज में उड़ने और उड़ाने वाले, सर्व खजानों के भण्डार से भरपूर रहने वाले ऐसे बाप के समीप और समान रहने वाले बच्चों को बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते। कुमारों को भी विशेष अथक और एवररेडी, सदा उड़ती कला में उड़ने वालों को बापदादा का विशेष यादप्यार।

(बापदादा ने डायमण्ड हाल में बैठे हुए सभी भाई-बहिनों को दृष्टि देने के लिए हाल का चक्र लगाया)

बापदादा का हर एक बच्चे से बहुत-बहुत-बहुत प्यार है। ऐसे नहीं समझें कि हमारे से बापदादा का प्यार कम है। आप चाहे भूल भी जाओ लेकिन बाप निरन्तर हर बच्चे की माला जपते रहते हैं क्योंकि बापदादा को हर बच्चे की विशेषता सदा सामने रहती है। कोई भी बच्चा विशेष न हो, यह नहीं है। हर बच्चा विशेष है। बाप कभी एक बच्चे को भी भूलता नहीं है, तो सभी अपने को; विशेष आत्मा हैं और विशेष कार्य के लिए निमित्त हैं, ऐसे समझ के आगे बढ़ते चलो। अच्छा। अभी सबसे मिलना हुआ, सभी मिले ना!

(दादी जानकी ने जगदीश भाई की याद दी) सब ठीक हो जायेगा। बहुतबहुत याद देना। फिर भी शुरू से सेवा की इन्वेन्शन में अच्छा पार्ट बजाया है। विशेषता दिखाने वालों को बाप की विशेष दुआयें मिलती हैं।

दादी जानकी से - आप तो ठीक हैं ना! बापदादा ने कहा था ``रेस्ट इज बेस्ट'' - यह सदा याद रखना। सेवा है लेकिन आप लोगों को आगे भी रहना है। शरीर आप दोनों के विशेष हैं। आत्मायें तो विशेष हो लेकिन शरीर भी विशेष हैं। वैसे तो दुआयें हैं सबकी। परन्तु शरीर को भी देखना। जब सबको सन्तुष्ट करने वाली हो तो शरीर को भी तो सन्तुष्ट करो ना। अच्छा –

दादी जी से - बहुत अच्छा चला रही हो। बापदादा पद्मगुणा खुश है। दोनों की कमाल है। बापदादा तो है ही। आप लोगों के रोम-रोम में `बाबा' है, तभी सभी के रोम-रोम में बाबा की याद दिलाने के निमित्त हो। उमंग-उत्साह दिलाने में नम्बरवन हो। बापदादा दोनों को देख बहुत खुश होते हैं। रोज़ अनेक बार आपकी माला जपते हैं। यह सभी (दादियां) भी साथ हैं। सभी अपना-अपना काम कर रहे हैं। आगे यह दो हैं बाकी साथ में आप सभी हो। सब साथी हैं। पाण्डव भी साथी हैं। यह देखो कैबिन वाले बहुत अच्छी सेवा करते हैं। किसके नाम लेवें, इसीलिए निमित्त इन्हों का ले लेते हैं, बाकी हैं सभी। बापदादा अगर एक-एक की महिमा करे तो सारी रात लग जाये। अच्छा।

वल्लभ भाई से - (बम्बई में हार्ट की बाईपास सर्जरी हुई है, 8 दिन में वापस मधुबन आ गये हैं)

योगयुक्त होने के कारण, अच्छा पार्ट बजाने के कारण हिसाब सहज चुक्तू हो गया। लम्बा नहीं हुआ। थोड़े में हिसाब चुक्तू हो गया। यह अच्छी विशेषता दिखाई। ठीक है। बहुत अच्छा। ऐसे लगता है जैसे हुआ ही नहीं।

(डा.बनारसी से) इसको भी पुण्य मिलेगा। पुण्य जमा हो जायेगा। अच्छा।

काठमाण्डु की शीला बहन से - (एक्सीडेंट के 10 वर्षो बाद बापदादा से मिल रही है)

(शीला बहन कह रही हैं - ``मेरा बाबा'') बाबा भी कहते - ``बच्ची मेरी'' है। आप बाबा की, बाबा आपका। सदा खुश रहो। सदा खुश रहती हो यही विशेषता है। बहुत अच्छा।

इसके बाद बापदादा को ज्योर्तिलिंगम् यात्राओं का मैप दिखाया गया तथा बापदादा ने स्विच ऑन कर लांचिग की और कहा कि यह रूहानी अलौकिक यात्रा है। सभी उमंग-उत्साह में रहकर लाइट हाउस बनकर जाओ जिससे अनेकों को बाबा का सन्देश मिलेगा।